किसी फैसले की कोई सीमा नहीं, बात बढ़ाना बेकार
एसोसिएशन ऑफ इंडियन मुस्लिम्स ने कहा कि हार-जीत से न जोड़ें फैसले को
भोपाल/ इंसानी फितरत कही जा सकती है कि वह कभी किसी बात से पूरी तरह संतुष्ट या मुतमईन नहीं हो सकता। अदालत के एक फैसले के बाद किसी दूसरे आदेश की इच्छा दिल में लिए देश के अमन-ओ-अमान, शांति-सुकून को दांव पर लगाया जाना मुनासिब कहा जा सकता है और न ही न्यायोचित।
एसोसिएशन ऑफ इंडियन मुस्लिम्स के अध्यक्ष औवेस अरब ने पत्रकारवार्ता में यह बात कही। बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के लिए आए उच्चतम न्यायालय के फैसले को वे न किसी की हार मानते हैं और न ही किसी के लिए जीत का फैसला। वे कहते हैं कि यह बड़ी बात है कि इस फैसले के बाद पूरा देश सामान्य है और सभी धर्मों ने इस फैसले को दिल से कुबूल कर लिया है। ऐसे में एमआईएम, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कहकर देश के अमन को खतरे में डालने की पहल कर रहे हैं। अरब ने कहा कि वे उस शख्स को देश का सबसे बड़ा दुश्मन करार देते हैं, जो देश के अमन-सुकून को तबाह करने पर आमादा हो। उन्होंने कि अदालत के फैसले को मुस्लिम समुदाय को इस तरह देखना चाहिए कि जहां इस निर्णय में एक बात हिन्दू समाज के पक्ष में कही गई है तो वहीं चार बातों में मुस्लिम पक्ष को आगे रखा गया है। ओवेस अरब ने कहा कि समाज बदल रहा है, लोगों की मानसिकता बदल चुकी है, हिन्दू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद के नाम पर सियासी रोटियां सेंकने वालों को अब पहचानने की सलाहियत आज की पीढ़ी में आ चुकी है। यही वजह है कि फैसले के बाद जिस गंभीरता और सब्र का परिचय देकर दोनों धर्मों ने जो मिसाल पेश की है, वह काबिल-ए-तारीफ है। तालीम, रोजगार और तरक्की के रास्ते पर बहुत आगे बढ़ चुके आधुनिक समाज को जाति, धर्म, मजहब, हिन्दू-मुस्लिम या साम्प्रदायिकता के नाम पर बहस करने और सड़कों पर आकर विवाद करने का वक्त नहीं है। उन्होंने देश के अमन, सुकून, भाईचारे और गंगा-जमुनी तेहजीब को बरकरार रखने के लिए अब राख में छिपी हुई चिंगारियों को हवा देने वाली ताकतों को पहचानने की अपील की है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को सोशल बायकाट कर इस बात का सबूत देना चाहिए कि हिन्दुस्तान अब नई विचारधारा पर चलने वाली पीढ़ी के साथ चल रहा है, उसे किसी विवाद के न्यायालयीन फैसले पर पूरा भरोसा और यकीन है। एक सवाल के जवाब में अरब ने कहा कि अदालत के फैसले पर दी जाने वाली जमीन का उपयोग इबादतगाह के अलावा भी भलाई के दूसरे कामों में की जा सकती है, यही अदालत के फैसले का सच्चा आदर कहा जा सकता है। अरब ने पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों को इस बहाने अपनी सियासत जिंदा रखने वाला करार दिया।
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