मैं कब दूल्हा बनूंगा....
सामाजिक विकृति को दर्शाता नाटक छोड़ गया कई सवाल
भोपाल ब्यूरो
तरक्की और समानता को लेकर की जाने वाली सारी बातें धरी रह जाती हैं, जब समाज में लड़के और लड़की के दुनिया में आने से पहले ही उनके लिए अलग-अलग मापदंड और विचारधाराएं सामने आती हैं। लैंगिक अनुपात के बिगड़े हालात से बनते हालात को रेखांकित करता एक नाटक मैं कब दूल्हा बनूंगा....? के जरिये इस सामाजिक कुरीति को दर्शाया गया। हरियाणवी पृष्टभूमि पर व्यंग्यात्मक, हास्य व प्रश्न उठाता नाटक प्रमोद सिंह ने लिखा है, जिसे अपनी परिकल्पना व निर्देशन में नाटककार सरफराज हसन ने सजाया और संवारा।
यंग्स थिएटर फाउंडेशन के कलाकारों के अभिनय से इस नाटक में सतवीर नाम के एक युवा के उम्र हो जाने के बाद भी विवाह ना होने से उत्पन्न हो रहे हालत पर कहानी आगे बढ़ती है सतवीर के पिता सुभाष जिनके जीवन का अब कुल लक्ष्य सिर्फ अपने दोनों लड़कों का विवाह कराना ही रह गया है, जो सुबह उठने से लेकर रात होने तक इसी उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि कैसे कैसी भी लड़की मिल जाए और इनकी शादी हो जाए। सतवीर का छोटा भाई बलवीर जो अपने बड़े भाई के हालत देखकर अब लड़कियों में कोई इंटरेस्ट ही नहीं दिखाता बल्कि पहलवानी में खुद को व्यस्थ रखने लगता है, दूसरी ओर सुभाष के मित्र गिरधारी और एक पंडित अलग-अलग समय पर लड़की दिखाने के नाम पर लगातार सुभाष से पैसे ऐंठते रहते हैं।
सतवीर रोज-रोज पाउडर क्रीम लगाकर मेकअप कर के घर और बाहर घूमता है कि कहीं अचानक कोई रिश्ता ना आ जाये। हर बार निराश के बात वो अपने पिता से जिद करता है कि अब मेरा वीजा निकलवा दो मैं तो खुद मलेशिया थाईलैंड बैंकॉक चला जाऊंगा और वहां से अपने लिए खुद लड़की ढूंढ लाऊंगा उसका पिता उसे समझता है ऐसे में एक दिन सुमन नाम की एक टीचर अपने पिता नेतराम के साथ सुभाष के घर शादी के लिए उनके लड़के सतवीर को देखने समझने आती है वहां कई हास्यप्रद हालत भी उत्पन होते है ऐसे में सुमन जैसी ही सब के सामने सतवीर से एक शादी से पहले एक शतज़् का कहती है कि शादी के बाद हम एक बेटी गोद लेंगे तो पूरे घर मे सन्नाटा छाह जाता है और फिर अचानक सभी सुमन की लड़की गोद लेने की बात पर बिफऱ पढ़ते हैं कि जब लड़का लड़की खुद बच्चे पैदा कर सकते हैं तो लड़की गोद लेने की क्या ज़रूरत है... तब सुमन बोलती है कि समाज मे जो कुछ अपराध लड़कियों के साथ हो रही है भ्रूण हत्या सहित बलात्कार आदि यही सब कारण है कि आज लड़कियों की इतनी कमी है क्योंकि हर परिवार बहु तो चाहता है पर बेटी कोई नहीं, जब बेटी पाओगे तभी तो बहु ला पाओगे। लेकिन सुमन की लड़की गोद लेने की बात पर कोई भी हामी नही भरता तब सतवीर आगे आकर कहता है कि मैं तैयार हूं सुमन जी अपन शादी के बाद लड़की गोद लेंगे पर सतवीर का यह कहते हैं उसकी माँ-पिता सहित सभी लोग उस पर हावी हो जाते हैं और वो आखिरकार सर झुकाकर अपनी असहायता को दशातज़ है सुमन अपनी पिता को लेकर बाद में आने का कहकर निकलती ही है कि पंडित और शादी कराने वाला एजेंट गिरधारी सुभाष के कान भरते हैं की वो अभी लड़की की सभी शतेज़् मानकार बस एक बार शादी हो जाने दे, शादी के बाद तो लड़की पर नकेल ढालना आता है हमे, आखिर कितने दिन बक बक करेगी और भी कई सारी माहिलाओं के लिए दोयमदजेज़् की बातें बाहर खड़ी सुमन सुन लेती है और वो अचानक घर के अंदर आकर कहती वाह तो यह खय़ालात है आपके अपने घर आने वाली बहु के लिए, वो कहती है मैं इसलिए लौटी की मुझे सतवीर सुलझे हुए और ईमानदार लगे, पर आप सब की बाते सुनकर मेरा भ्रम टूट गया क्योंकि आप सभी को सिफ़ज़् ओर सिफज़् घर मे जौते रहने वाली, बच्चे पैदा करने वाली बहु चाहिए बेटी किसी को नहीं चाहिए.. आज के दौर में भी ऐसी घटिया सोच वाले परिवार में मुझे क्या किसी लड़की को बहु बनकर नहीं आना....सभी सुमन की बातें सुनकर शमिज़्न्दा होते हुए अपनी गदज़्न झुका लेते हैं और हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं बैकग्राउंड में एक गाना बजता है और यहीं समाज को संदेश देता हुआ यह नाटक समाप्त हो जाता है। नाटक के सूत्रधार दीपांशु साहू थे। जबकि सुभाष (पिता) की भूमिका प्रकाश मिश्रा और कनिका (माँ) की भूमिका ख़ुशबू पाण्डेय ने निभाई।
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