भाजपा की परिषद गुपचुप बदलना चाहती है इकबाल मैदान का नाम
सारे जहां से अच्छा.... के रचयिता इकबाल को शहर निकाला देने की तैयारी!
भोपाल ब्यूरो
सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा.... के रचयिता दुनिया के मकबूल शायर अल्लामा इकबाल की निशानियों को भोपाल से हटाने की कुत्सित सियासत शुरू हो गई है। इकबाल के नाम पर मौजूद मैदान, लाइब्रेरी और अवार्ड को नए नामों के साथ याद करने की तैयारी की जा रही है। गुपचुप तरीके से निकाल फेंके गए इकबाल मैदान के बोर्ड को लेकर समय रहते उठी आवाजों ने सुर्खियों में तो ला ही दिया है, साथ ही इस प्रयास पर पानी फेरने क हालात भी बना दिए हैं। जहां नगर निगम अब तक बोर्ड हटाए जाने की बात से अनभिज्ञता जाहिर कर रहा है, अब बात को बदलते हुए उसने बोर्ड के नवीनीकरण की बात कहकर अपनी चोरी पर पर्दा डालना शुरू कर दिया है।
सूत्रों का कहना है कि दो-तीन दिन पहले राजधानी के बीच स्थित इकबाल मैदान के साइन बोर्ड को गुपचुप तरीके से कटर से काटकर निकाल दिया। इसको लेकर नगर निगम का कोई अधिकारी-कर्मचारी न तो जवाबदारी लेने को तैयार दिखाई दे रहा है और न ही किसी को इसके हटाए जाने की जानकारी ही है। युवाओं की एक संस्था द्वारा इस मामले पर हो-हल्ला करने के सोशल मीडिया पर उठे बवाल के बाद निगम ने इस बात को स्वीकार तो कर लिया है कि बोर्ड उनके द्वारा मरम्मत के लिए हटाया गया है और इसको नए रूप में लगाए जाने की तैयारी की जा रही है, लेकिन इस प्रक्रिया ने राजधानी की भाजपा शासित नगर निगम परिषद के इरादों की पोल खोलकर रख दी है।
ऐसे आया संज्ञान में
इकबाल मैदान की बदहाली को लेकर जमीयत उलमा हिन्द की प्रदेश इकाई ने पिछले दिनों राजधानी में एक अभियान चलाया था। जिसके बाद यहां मैदान के आसपास की दीवारों की रंगाई-पुताई और इसके टूटे-फूटे हिस्सों को सहेजने के प्रयास किए गए थे। इसी बीच टीम के अगुवा हाजी इमरान हारून को इस बात की जानकारी मिली कि मैदान के दोनों तरफ उर्दू और हिन्दी में लगाए गए बोर्ड को रातों-रात हटा दिया गया है। इसके बारे में किसी को कोई जानकारी भी नहीं है। उन्होंने सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से इस बात का ऐलान किया कि इकबाल मैदान का बोर्ड अगर नगर निगम नहीं लगाएगा तो वे स्वयं अपने खर्च से इस बोर्ड की पुर्नस्थापना करेंगे।
पार्षद ने जताई अनभिज्ञता, विधायक ने जताया रोष
इकबाल मैदान का बोर्ड गुपचुप तरीके से निकाल दिए जाने की सूचना मिलने पर क्षेत्रीय पार्षद सऊद अहमद ने कोई जानकारी न होने की बात कहते हुए निगम के संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों से इस बारे में दरयाफ्त किया लेकिन उन्हें किसी तरह की जानकारी नहीं मिल पाई। इस पर उन्होंने मैदान के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे चैक करवाकर दोषी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही करने का ऐलान किया। इस बारे में जब मध्य क्षेत्र के विधायक आरिफ मसूद को जानकारी दी गई तो उन्होंने तत्काल निगम कमिश्रर बी विजय दत्ता को कॉल किया और नाराजगी जाहिर की। उन्होंने स्पष्ट कहा कि शहर की विरासत और पुरानी पहचान से होने वाली छेड़छाड़ को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने तत्काल इस मामले को दुरुस्त करने के आदेश निगम कमिश्रर को दिए।
भाजपाई महापौर की बदनीयती
सूत्रों का कहना है कि भाजपाई महापौर आलोक शर्मा शहर से नवाबकालीन और मुस्लिम पहचान रखने वाले स्थानों के नाम बदलने की एक मुहिम चलाए हुए हैं। इस बीच उन्होंने भोपाल का नाम भोजपाल करने की पैरवी भी की थी। लेकिन इस प्रस्ताव को सरकारी मंजूरी नहीं मिल पाई। उनके ही कार्यकाल में भोपाल के शहीदों की याद में बनाए गए शहीद स्मारक का नाम बदलकर विलीनीकरण द्वार रख दिया गया है। बड़े तालाब पर बनाए गए केबल ब्रिज का नाम भी शहर के काजी रहे मरहूम वज्दी उल हुसैनी के नाम पर रखने के प्रस्ताव को खारित करते हुए उन्होंने इसका नाम भोज सेतु रखवाया है। सूत्र बताते हैं कि आलोक शर्मा ने इकबाल मैदान का नाम किसी जैन मुनि के नाम पर रखने का एमआईसी प्रस्ताव भी पारित कर दिया है और इसी कड़ी के तहत गुपचुप तरीके से इकबाल के नाम का लिखा साइन बोर्ड हटवा दिया गया है। सूत्र यह भी बताते हैं कि इकबाल मैदान पर फिलहाल जारी जैन समाज के प्रवचन के दौरान ही नए नामकरण की योजना महापौर ने बनाई थी, लेकिन अचानक हुए हंगामे से यह योजना टल गई है।
इकबाल का भोपाल से रिश्ता
दुनियाभर के मकबूल शायर अल्लामा इकबाल का भोपाल से गहरा नाता रहा है। वे जब भी यहां आते थे तो शीश महल में उनका कयाम हुआ करता था। इसी बीच वे अक्सर सुबह के वक्त पास ही स्थित खिरनी वाला मैदान (अब इकबाल मैदान) में टहला करते थे। यहां उन्होंने अपनी कई गजलें और नज्में लिखी हैं। इकबाल को भोपाल की सुबह और यहां हर सिम्त से आने वाली अजानों की आवाजें बहुत पसंद थीं। सन 1937 में उनका इंतकाल हुआ और उस समय अविभाजित भारत के लाहौर में दफनाए गए थे। लेकिन उनकी भोपाल से मुहब्बत के चलते 1984 में अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में इकबाल मैदान की नींव रखी गई। इस दौरान नगर निगम आयुक्त देवीशरण थे और बीडीए चैयरमेन ममनून हुसैन। भारत भवन की कल्पना को साकार करने वाले स्वामी नाथन ने इकबाल मैदान के लिए खास डिजाइन तैयार किया था और इकबाल के पसंदीदा पक्षी शाइन को यहां स्थापित करने की परिकल्पना की थी। कई सियासी, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का गवाह होने के चलते इकबाल मैदान का नाम शहर ही नहीं बल्कि पूरे सूबे और देशभर में जाना जाता हैl
इनका कहना
शहर की निशानियों को मिटाने की सियासी कोशिशें की जा रही हैं। पुराने नामों को नए नाम देकर शहर की गंगा-जमुनी तहजीब को मिटाया जा रहा है। इकबाल मैदान के दोनों सिरों से हटाए गए बोर्ड को वापस लगाया जाए और इसको हटाने की साजिश करने वालों के खिलाफ कार्यवाही भी हो।
हाजी मोहम्मद इमरान हारून,
सचिव, जमीयत उलेमा हिंद, मप्र
-इकबाल मैदान से बोर्ड चोरी किए जाने की जानकारी मिली है। इस बारे में निगम के संबंधित अधिकारियों-कर्मचारियों से पूछताछ की जा रही है। इस मामले को लेकर दोषी लोगों के खिलाफ एफआईआर कराई जाएगी।
सऊद अहमद, पार्षद
-शहर की नवाबकालीन और पुरातन विरासत को विकृत करने की भाजपाई मंशाओं को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। किसी भी धर्म या समाज के लिए किसी नामकरण के लिए नए स्थानों की तलाश की जाए, न कि पुरानी पहचानों पर किसी नाम को थोपा जाए। इस मामले में निगम के आला अफसरों से बात की है। जल्दी ही बोर्ड पुराने स्वरूप में वापस लगाया जाएगा। साजिश रचने वालों पर कार्यवाही भी होगी।
आरिफ मसूद, विधायक
0 Comments