केन्द्रीय संगठन ने रोक दिया था शंकर दयाल शर्मा का टिकट....!
-प्रदेश में चल रहे सियासी घमासान पर छलका बुजुर्ग नेता का दर्द
भोपाल ब्यूरो
प्रदेश में जारी सियासी घमासान को कांग्रेस के बुजुर्ग नेता पार्टी की लचर नीतियों और आपसी ठसक से जोड़ते हैं। उनका मानना है कि पार्टी में रसूखदारों, पूंजीपतियों और भाई-भतीजावाद की परंपरा नई नहीं है। पूर्व में भी ऐसे हालात बनते रहे हैं। हालात यहां तक भी बने थे कि पूर्व राष्ट्रपति स्व. शंकरदयाल शर्मा जिस दौर में प्रदेश की सियासत में शामिल थे, केन्द्रीय नेतृत्व ने उन्हें चुनाव से अलग रखने का फरमान जारी कर दिया था। बुजुर्ग नेताओं का कहना है कि आज जो हालात प्रदेश में बने हैं, वह सत्तर बरस से चली आ रही दकियानूसी और घिसीपिटी परंपराओं का ही नतीजा है।
तीन प्रदेशों के राज्यपाल, कांग्रेस में कई आला पदों पर रह चुके और वर्तमान में मप्र उर्दू अकादमी के चेयरमेन डॉ. अजीज कुरैशी कहते हैं कि पार्टी में उस दौर में सियासी घमासान चलता रहता था, जब इसकी कमान स्व. इंदिरा गांधी और उनके बेटे स्व. संजय गांधी के हाथों में हुआ करती थी। कुरैशी याद दिलाते हैं कि जब वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महासचिव के पद पर थे, उस समय स्व. शंकरदयाल शर्मा प्रदेश की सियासत से जुड़े हुए थे। उस दौर में उन्हें स्व. संजय गांधी ने आदेश किया कि प्रदेश से आने वाली उम्मीदवारों की सूची में शर्मा का नाम शामिल न किया जाएगा। बावजूद इसके भी डॉ. कुरैशी ने शर्मा का नाम शामिल कर लिस्ट दिल्ली पहुंचाई तो उन्हेंं नाराजगी का सामना करना पड़ गया था। डॉ. कुरैशी कहते हैं कि पार्टी में पूंजीपतियों और कारखाने वालों और उच्च घरानों का बोलबाला है। बरसों से मेहनत कर रहे दलित, आदिवासी, मजदूर और छोटे घरानों के अलावा अल्पसंख्यकों को कभी पार्टी ने तवज्जो नहीं दी। यही वजह है कि एक धारा में बहती पार्टी कब टूट गई और कब इसमें बिखराव हो गया, किसी को पता भी नहीं चला। प्रदेश में जारी सियासी घमासान के लिए वे पार्टी की गलत नीतियों को ही जिम्मेदार मानते हैं। उनका कहना है कि अगर सबको साथ लेकर चलने, सबकी बात मानने और सभी को समान तवज्जो देने की नीति अपनाई जाती तो संभवत: यह हालात नहीं बनते। उन्होंने विश्वास जताया कि पार्टी की सरकार को कोई खतरा नहीं है, यह संकट टल जाएगा और कमलनाथ सरकार अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी। आने वाले चुनाव में भी भाजपा को इस तोडफ़ोड़ और प्रदेश में अस्थिरता फैलाने का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
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