मुश्किल में मदीना रुबात, जिम्मेदारी से बच रहे ओहदेदार
-नवाब भोपाल ने सउदी अरब में हाजियों के ठहरने के लिए किए थे इंतजाम
भोपाल ब्यूरो
सउदी अरब में मौजूद शाही रूबात को लेकर मंडरा रहे खतरे के बादल अब गरज कर भोपाल रियासत के हाजियों पर बरसने की तैयारी में हैं। लंबे समय से चल रहे विवाद के बाद मदीना रुबात पर सउदी सरकार का ताल जड़ गया है। हाजियों की रवानगी के पास आते समय के साथ शाही औकाफ के पदाधिकारियों का जिम्मेदारी के लिए एक-दूसरे पर टाल-मटोल करना हज मुसाफिरों के माथे की शिकन के रूप में उभरने लगा है। करीब 103 साल की इस व्यवस्था के भंग होने से भोपाल रियासत के हाजियों को अपने हज सफर के लिए ज्यादा पैसा अदा करने की नौबत तो आएगी ही, साथ ही बेगमात द्वारा किए वक्फ की मंशा का भी इससे हनन होगा।
सूत्रों के मुताबिक सउदी अरब में स्थित शाही रुबात को लेकर चले आ रहे विवाद की खबरें कई दिनों से राजधानी में गूंज रही थीं। लेकिन शुक्रवार को इसका ऐलान उस समय सार्वजनिक तौर पर किया गया, जब यहां मोती मस्जिद में किए गए रुबात कुर्रा के दौरान महज मक्का की रुबात के लिए ही नाम चुने गए। इस दौरान हाजियों को बताया गया कि मदीना रुबात के लिए फिलहाल इंतजाम किए जा रहे हैं, जिसके लिए जल्दी ही हाजियों को सूचना दे दी जाएगी। भोपाल रियासत के हाजियों में इस बात को लेकर गुस्सा और नाराजगी पनपने लगी है। उनका कहना है कि नवाब शासनकाल से चली आ रही इस व्यवस्था को इसकी देखरेख के लिए जिम्मेदार बनाए गए लोगों ने ही ध्वस्त कर दिया है। जिसका असर उन गरीब हाजियों पर पड़ेगा, जो रुबात में रिहाईश खर्च की बचत होने से अपने सफर को आसान बनाने की उम्मीद लगाए रहते हैं।
क्या है रुबात
नवाब शासनकाल के दौरान बेगमात ने सउदी अरब के मक्का और मदीना में कुछ बहुमंजिला इमारतें बनवाई थीं। इनकी मंशा यह थी कि भोपाल रियासत (भोपाल, सीहोर और रायसेन जिले) के हाजियों को हज और उमराह के दौरान निशुल्क ठहरने की व्यवस्था मिल जाए। करीब 103 साल से जारी इस व्यवस्था का नतीजा यह है कि इन जिलों के हाजियों को आम खर्च की तुलना में करीब 45-50 हजार रुपए कम खर्च पड़ते हैं।
दिक्कत कहां हुई
सूत्रों का कहना है कि रूबात की व्यवस्था संभालने वाले अब तक मौजूद रहे अधिकांश नाजिमों ने इन रुबात को नुकसान ही पहुंचाया है। बताया जाता है कि सउदी सरकार के नियमों से इतर काम करने वाले ऐसे नाजिमों की वजह से इन रुबात का कई करोड़ रुपए सउदी खजाने में अटका हुआ है। बताया जाता है कि तत्कालीन मुतवल्ली सबा सुल्ताना द्वारा वर्तमान में बनाई गई कमेटी द्वारा लगातार की गई लापरवाहियों के चलते मदीना स्थित रुबात में पिछले कई महीनों से ताले पड़ गए हैं। इन बहुमंजिला भवनों को लेकर नवाब परिवार और अन्य कई लोगों ने अपने दावे भी पेश कर दिए हैं, जिसके चलते इनका मामला न्यायालयीन प्रक्रिया में चला गया है। लंबे समय से तारीख दर तारीख के फेर में पड़े इस मामले के जल्दी हल होने की उम्मीद कम ही नजर आ रही है। ऐसे में चंद माह बाद शुरू होने वाले हज सफर के लिए जाने वाले भोपाल रियासत के हाजियों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
नए-पुराने ओहदेदारों में खींचतान
शाही औकाफ की मुतवल्ली सबा सुल्ताना द्वारा बनाई गई कमेटी में राजधानी भोपाल के कारोबारी सिकंदर हफीज खान को जिम्मेदार बनाया गया था। रुबात मामले में आए अवरोध के बाद सिकंदर हफीज का कहना है कि वे अपने पद से नवंबर 2019 में इस्तीफा दे चुके हैं। जबकि बनाए गए नए मेम्बर मोहम्मद जावेद खान इस सारी प्रक्रिया को उनके पदभार ग्रहण होने से पहले का मामला करार देते हैं। नए और पुराने सदस्यों का यह भी कहना है कि वे किसी तरह व्यवस्था करके इस साल हज पर जाने वाले मुसाफिरों के ठहरने का इंतजाम कराने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि पूर्व पार्षद शाहिद अली और शहर के नागरिकों को कहना है कि व्यवस्था सिर्फ एक साल के लिए ही क्यों, इस मामले को पूरी तरह खत्म करने और व्यवस्था को पूर्व की तरह बहाल करने की कोशिश की जाना चाहिए।
बदली जाना चाहिए व्यवस्था
ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड अध्यक्ष काजी सैयद अनस अली नदवी का कहना है कि वर्ष 1949 में हुए मर्जर के बाद करीब 23 साल तक रुबातों की व्यवस्था मसाजिद कमेटी के जिम्मे थी। लेकिन वर्ष 1972 में कर्नल मेहबूब ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते शाही औकाफ की रचना करवा दी और रुबातों का इंतजाम भी इसके हवाले कर दिया। काजी अनस का कहना है कि अब शाही परिवार मौजूद नहीं हैं, इसलिए शाही औकाफ की अलग से व्यवस्था भी मायने नहीं रखती। नवाब परिवार द्वारा किए गए वक्फ की मंशा के मुताबिक काम करने के लिए इसका जिम्मा दोबारा मसाजिद कमेटी के हवाले किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि काजी, मुफ्ती, उलेमाओं की मौजूदगी वाले इदारे से रुबात की व्यवस्था संचालन होने से इसमें ईमानदारी और लोगों के हक की बात की उम्मीद की जा सकेगी।
933 में से मिला 200 को मौका
भोपाल, रायसेन और सीहोर जिले के करीब 933 हाजियों को इस बार हज पर जाने का मौका मिला है। अब तक जारी व्यवस्था के दौरान मक्का में करीब 230 हाजियों को ठहरने की मुफ्त व्यवस्था मिला करती थी। जबकि मदीना में रियासत के सभी हाजियों को ठहरने की फ्री व्यवस्था होती थी। शुक्रवार को राजधानी की मोती मस्जिद में किए गए कुर्रा के दौरान करीब 200 सीटों का चयन किया गया है। मदीना में रुकने के लिए किए गए इंतजाम में इस बार सीटों की कटौती कर दी गई है। काजी-ए-शहर सैयद मुश्ताक अली नदवी और शहर मुफ्ती अबूल कलाम की मौजूदगी में किए गए कुर्रा के दौरान बड़ी तादाद में हज आवेदक और शहरी मौजूद थे।
इनका कहना
मक्का के लिए सउदी अरब से मिले कोटे के मुताबिक हाजियों का चयन कर दिया गया है। मदीना रुबात का मामला जल्दी ही सुलझ जाएगा और भोपाल रियासत के सभी हाजियों को वहां ठहरने की सुविधा मिल सकेगी। मदीना रुबात को लेकर जारी विवाद में 23 मार्च को सुनवाई है, उम्मीद है कि इसमें सुकून देने वाला फैसला सामने आएगा।
आजम तिरमिजी,
सचिव, शाही औकाफ
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