टिकट कल्चर ने खत्म किए एक्चुअल फैंस
साद सिद्दीकी ।। भोपाल
एक वक्त था जब दुनिया के नक्शे पर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने भारत को हॉकी जैसे खेल के जरिए अलहदा पहचान दिलाई थी। भारतीय हॉकी में उनके बेटे अशोक ध्यानचंद ने भी करिशमाई हॉकी खेलकर देश को गौरवांवित किया। 1975 के वल्र्ड कप फाइनल में भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबला 1-1 से बराबरी पर था। सुरजीत सिंह के पास पर अशोक कुमार ने गोल करने की कोशिश की, लेकिन गेंद गोलपोस्ट से टकराकर वापस आ गई। हालांकि अशोक कुमार ने देर किए बिना दूसरी कोशिश में गेंद को गोलपोस्ट के अंदर पहुंचा दिया और भारत को चैंपियन बना दिया।
अशोक कुमार का जन्म 1 जून 1950 को उत्तर प्रदेश के मेरठ में हुआ था। वह भारत में मोहन बागान और इंडियन एयरलाइंस की तरफ से खेले। हॉकी में उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें 1974 में अर्जुन अवॉर्ड से नवाजा गया। उन्होंने न केवल विश्व में भारत का परचम लहराया बल्कि देश के खिलाडिय़ों को हॉकी के बेहतरीन गुर से भी नवाजा। हाल ही में उन्हें मोहन बागान ने अपने क्लब के स्थापना दिवस पर सम्मानित किए जाने का ऐलान किया है। इस मौके पर हमने उन्हें बधाई देते हुए उनसे खास बातचीत की।
हॉकी के लिए दांव पर लगाया कॅरियर
पुराने दिनों को याद करते हुए अशोक ध्यानचंद ने कहा कि वह दौर जब सिर्फ अपने खेल के लिए उन्होंने अपना कॅरियर तक दांव पर लगा दिया था। उन्होंने बताया कि यह वह दौर था, जब वे जयपुर (राजस्थान) से अपनी पढ़ाई कर रहे थे। बी-काम की परीक्षा सिर पर थी, लेकिन उन्होंने इसे तरजीह न देकर कोलकाता जाने का मन बना लिया था। इसके लिए उन्होंने मोहन बागान ज्वाइन किया था। वे बताते हैं कि उस दौर के बड़े और नामी देश के खिलाडिय़ों के साथ क्लब में शामिल होना और उनका हिस्सा बनना किसी सपने से कम नहीं था। इसके लिए उन्होंने पढ़ाई को छोड़ क्लब जाने का मन बनाया था। यह वह वक्त था जब उन्होंने 1968 में पहली बार मोहन बागान का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि उन्हें इसके लिए अपना प्रदेश छोडऩा पड़ा था।
टिकट कल्चर से खत्म हुए असली फैंस
उन्होंने कहा कि वे दुखी हैं कि उनके असली फैंस अब खो गए हैं। खेलों के असली कद्रदान टिकट कल्चर में पीछे रहे गए हैं। उन्होंने बताया कि पहले जब वे खेलते थे तो उन्हें देखने के लिए हजारों के तादाद में फैंस आते थे। ये वे लोग होते थे जो खेल और खिलाड़ी के पारखी होते थे। अक्सर इनमें ठेले, रेहणी, पटरी और खोमचे वाले बड़ी संख्या में इनमें शामिल हाते थे। आज टिकट कल्चर ने उन्हें पीछे छोड़ दिया है। अब लोग परिवार सहित सिर्फ आउटिंग के लिए आते हैं। भरकम टिकट के बीच प्रशंसक टीवी के जरिए बनाए जाते हैं। कैमरे में आने के लिए अलग-अलग वेशभूषा और रंगों का इस्तेमाल सिर्फ टेलिकास्ट में छाने के लिए किया जाता है। इसमें कई खेल पीछे छूट गए हैं। राष्ट्रीय खेल हॉकी भी इससे अछूता नहीं है।
0 Comments