मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल- दर्द मिन्नत कशे दवा न की प्रस्तुति
भोपाल । मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग की विभिन्न अकादमियों द्वारा कोविड-19 महामारी के दृष्टिगत बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों पर एकाग्र श्रृंखला 'गमक' का ऑनलाइन प्रसारण सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर किया जा रहा है| श्रृंखला अंतर्गत आज मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा तापसी नागराज, जबलपुर एवं याकूब मालिक, भोपाल द्वारा 'शाम ए ग़जल' प्रस्तुति का प्रसारण किया गया|
शाम ए ग़ज़ल कार्यक्रम में सबसे पहले आकाशवाणी दूरदर्शन की ए ग्रेड गायिका तापसी नागराज ने देशभक्ति के रंग से शुरुआत करते हुए प्रख्यात लेखक चकबस्त की गज़ल- ये हिन्दोस्तां है हमारा वतन, मोहब्बत की आँखों का तारा वतन से की| इस देशभक्ति ग़जल के बाद आपने विरह की ग़ज़ल- तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी, तेरे जाँ निसार चले गए, प्रख्यात सूफ़ी शायर अमीर खुसरो का कलाम- खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग और मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल- दर्द मिन्नत कशे दवा न से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया|
सुश्री तापसी नागराज के साथ तबले पर लोकेश मालवीय और हार्मोनीयम पर- श्री श्रीधर नागराज ने संगत दी ।
दूसरी प्रस्तुति की शुरुआत श्री याकूब मलिक ने मिर्ज़ा ग़ालिब के कलाम- दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है, आख़िर इस दर्द की दावा क्या है से की उसके पश्चात डॉ. इकराम अकरम की गजल- मैंने कहा क़रीब आ उसने कहा नहीं नहीं एवं प्रख्यात शायर बशीर बद्र की लिखी ग़ज़ल- खुदा हमको ऐसी खुदायी न दे, कि अपने सिवा कुछ दिखायी न दे से प्रस्तुति का समापन किया|
याकूब मलिक के साथ ढोलक पर- श्री महरूद्दीन, ऑक्टोपैड पर- श्री रेहान अली और सिन्थसाइज़र पर- श्री अज़हर अली ने संगत दी|
0 Comments