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एकाग्र श्रृंखला 'गमक'

विविध कलानुशासनों की गतिविधियों का ऑनलाइन प्रदर्शन

गमक के अंतर्गत मालवी गायन' की प्रस्तुति 




भोपाल । मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग की विभिन्न अकादमियों द्वारा कोविड-19 महामारी के दृष्टिगत बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों पर एकाग्र श्रृंखला 'गमक' का ऑनलाइन प्रसारण सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर किया जा रहा है| श्रृंखला अंतर्गत आज जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी द्वरा कमला बाई भूरिया और साथी, देवास का 'मालवी गायन' एवं विक्की बाघमारे और साथी, बैतूल द्वारा 'गोंड जनजातीय' नृत्य प्रस्तुति का प्रसारण किया गया| 

श्रृंखला अंतर्गत प्रथम प्रस्तुति कमला बाई भूरिया और साथियों द्वारा 'मालवी गायन' की हुई| कमला बाई ने गायन की शुरुआत गणेश वंदना- चालो हो गजानंद जोशी का चाला से की उसके बाद पारंपरिक मालवी लोकगीत- साहबा म्हारे लहदो करणफूल झुमका, मामेरा गीत- सांवरियो वीरो म्हारो मामेरो भर लाया रे, वर्षा गीत- अरर... सावण आयो रे एवं लोकगीत- सँवारा रे म्हारो जियो घबराय मालवी गीतों का गायन किया| 

प्रस्तुति में सुश्री कमला बाई भूरिया के साथ सहगायन में द्रोपती देवी, मधु भाभर एवं सुनीता सेवदा ने और हारमोनियम पर अशोक कुमार, ढोलक पर शान्तीलाल राजोरिया ने संगत दी|

दूसरी प्रस्तुति विक्की बाघमारे और साथियों द्वारा गोंड जनजातीय नृत्य 'ठाट्या' और 'ढंढार' की प्रस्तुति हुई| प्रस्तुति में श्री विक्की बाघमारे के साथ कोंगा युवने, दिलीप युवने, मिलाप युवने, गीताराम युवने, मन्सू युवने, सीडू युवने, गुड्डू युवने, राजू उइके, निर्मल इरपाचे, भगवत इरपाचे एवं दर्शन उईके ने नृत्य में सहभागिता निभाई|    

गोंड मध्यप्रदेश के मंडला जिले के चाड़ा के जंगलों के आस-पास रह्नेवाली जनजाति है और इनके नृत्यों में जीवन और प्रकृति के सुन्दर आयाम देखने को मिलते हैं| इन नृत्यों को देखते हुए जहाँ एक ओर हमें उनकी पारम्परिक वेशभूषा, संगीत और नृत्य का कौशल देखने को मिलता है वहीं दूसरी ओर इन नृत्यों के माध्यम से गोण्ड आदिवासियों की आस्थाएं उनके कर्मकांड और स्मृतियों के साथ चली आ रही महान विरासत के दर्शन भी होते हैं|

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